
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) शब्द अक्सर सुनने में आता है। Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) वो हार्मोन है, जिसे सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग जैसे नशों की जड़ माना जा चुका है। इस लेख में हम जानेंगे की आखिर ये डोपामाइन क्या है? यह कैसे काम करता है? क्यों डोपामाइन हमें एक नशेड़ी की तरह लाचार बना देता है? इससे कैसे बच सकते हैं?
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) हार्मोन क्या है और कैसे काम करता है?
डोपामाइन हम सबके दिमाग में पाया जाने वाला एक केमिकल है, जो हमारे मूड को कंट्रोल करता है। किसी भी कारण से जब हमें कोई ख़ुशी मिलने वाली होती है, तो हमारा दिमाग Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) डिस्चार्ज करता है, नतीज़तन हम ख़ुश फील करते है।
ऐसे ही कोई रिवॉर्ड या अवार्ड मिलने, स्वादिष्ट भोजन करने, अपनी तारीफ सुनने, सुंदर या नई ड्रेस पहनने और सोशल मीडिया पर लाइक्स, फॉलो या वायरल होने पर भी दिमाग डोपामाइन रिलीज़ करता है। यही डोपामाइन इन सब कारणों की जड़ है।
काफी समय तक पार्किन्सन रोग को डोपामाइन की डेफीसिइन्सी (कमी) से जोड़कर देखा जाता रहा। लेकिन 1980 में कैमब्रिज यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर वोल्फ्राम शुल्ट्ज़ ने चूहों पर एक प्रयोग के दौरान पाया कि दिमाग के बीच वाले हिस्से के अंदर किसी भी काम के पूरा होने पर मिलने वाले इनाम का सीधा सम्बन्ध डोपाइन से है। उनके अनुसार सभी इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं, नशे या लतों और यहॉं तक कि सेक्स की इच्छा के लिये भी डोपामाइन ही जिम्मेदार होता है।
शुल्ट्ज़ ने सेब के एक टुकड़े को स्क्रीन के पीछे रखा और पाया जैसे ही चूहे ने उस टुकड़े को चखा उसके मस्ष्कि के अंदर डोपामाइन की एक जोरद़ार प्रतिक्रिया हुई। शुल्ट्ज़ के शब्दों में ‘हमें किसी भी काम के पूरा होने तक उसमें लगातार लगे रहने के लिये दिमाग से मिलने वाले एक सिग्नल का गहरा नाता है।’
कनेक्टिकट के न्यू हेवन स्थित येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के नेनाद सेस्टन और आंद्रे सूसा की रिसर्च के अनुसार आदमियों और बंदरों के बीच अंतर का एक महत्वपूर्ण कारण डोपामाइन ही है। रिसर्च के अनुसार मानव में 1.5% न्यूरॉन्स डोपामाइन का उत्पादन करते हैं, जो कि बंदरों की तुलना में तीन गुना अधिक है।
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) एडिक्शन के नतीजे
आज कल ऐसी दुखद खबरें आम होती जा रही हैं। Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) हमारे समाज को बर्बाद करने पर तुला है। इस का असर केवल बड़े लोगों तक ही सीमित नहीं है, बच्चों में मोबाइल की लत (Mobile Addiction in kids) के कारण तो देश का भविष्य ही खतरे में है।
जिस काम के करने से बहुत खुशी मिल रही हो तो हम बार–बार उस काम को करना चाहते हैं। ऐसा होने पर दिमाग अधिक मात्रा में Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) रिलीज करता है। अब यह काम सबके लिये अलग अलग हो सकता है जैसे कि गेमिंग, सोशल मीड़िया, रील्स या फिर शार्ट वीडियोज इत्यादि।
आप उदास महसूस कर रहे हैं और शॉपिंग करने निकल गये, तो शॉपिंग करके आपको अच्छा महसूस होगा। लेकिन खुशी की इस फीलींग को फिर से हासिल करने के लिए आप फिर से शॉपिंग करेंगे। जिससे आप अपना बजट बिगाड़ लेंगे और फिर क्रेड़िट कार्ड या EMI का चक्रव्यूह आपको बर्बाद करने के लिये काफी है। आप चाहकर भी इस सायकल से निकल नहीं पायेंगे। बाइपोलर मेनियक फेज में भी कुछ इसी तरह का व्यवहार देखने को मिलता है। जिसकी वजह से कितने ही लोगों का जीवन पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
सोशल मीडिया की लोकप्रियता डोपामाइन Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) की खुराक के कारण बढ़ रही है। रिसर्चस बताती हैं कि सोशल मीडिया हमारे सेल्फ कान्फीडेन्स के लिए भी बुरा है क्योंकि हम दूसरों की नजरों में बेहद खूबसूरत, बुद्धिजीवी, उच्च शिक्षित और पैसे वाला दिखाने के लिए एडिट की हुई सामग्री सोशल मीडिया पर डालते हैं। इससे होता ये है कि हम अपनी वास्तविक छवि, अपने वास्तविक दर्जे और अपनी वास्तविक आर्थिक स्थिति को लेकर स्वयं को हीन समझने लगते हैं। और यह हीनता आत्मविश्वास को बुरी तरह गिरा देती है।
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) और सोशल मीडिया
2021 में फेसबुक के आंतरिक दस्तावेज़ लीक का एक मामला सामने आया था, जिसमें फ़्रांसेस हौगेन नामक व्हिसलब्लोअर ने द वालस्ट्रीट जनरल के माध्यम से बताया कि इंस्टाग्राम किशोरों, खासकर लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यही Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) था।
हमारे शरीर में हर ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ पर थोड़ा-थोड़ा डोपामिन Dopamine रिलीज़ होता है, और यूज़र बार-बार ऐप चेक करने लगता है। Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) की खुराक पाने के चक्कर में सोशल मीडिया लोगों, विशेषकर किशोरवय के लड़के लड़कियों को इतनी बुरी तरह से अपनी जकड़ में ले लेता है कि वे इसके लाइक और डिस्लाइक के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं। यह उन्हें वास्तविक दुनिया से भी काट देता है।
डोपामाइन Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) का बढ़ा हुआ स्तर विवेकपूर्ण फैसले लेने की क्षमता को कम कर देता है। यही कारण है कि बिना परिणामों की परवाह किए वे लाइक्स के चक्कर में अपनी अंतरंग तस्वीरे और अत्यंत निजी जानकारी भी सोशल मीडिया पर साझा करते हैं जिससे उनके साइबर बुलिंग का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की वेबसाइट पर प्रकाशित एक जर्नल लेख के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में किशोरों में ड़िप्रेशन की दर में वृद्धि हुई है। यह वही समय अवधि है जब सोशल मीडिया की समाज में लोकप्रियता तेजी के साथ बढ़ी है।
सोशल मीडिया की लत मूड,इमोशन्स और फिजिकल एक्टीविटीज को नेगेटिव रूप से प्रभावित कर सकती है जिससे मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो सकती है। लीक हुए दस्तावेजों से यह भी जानकारी सामने आयी कि 6% किशोर लड़कियों के मन में इंस्टाग्राम पर जाने के बाद आत्महत्या के विचार अधिक आए। 32% किशोर लड़कियों ने कहा कि इंस्टाग्राम के कारण उन्हें अपने शरीर के बारे में बुरा महसूस हुआ।
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) और ऑनलाइन गेमिंग लत
भारत में कुछ समय पहले ‘Blue Whale Game’, ‘PUBG’ और ‘Tik Tok’ आदि पर युवाओं में नशे की लत और आत्महत्या करने या परिजनों को नुकसान पहुंचाने की बढ़ती घटनाओं के कारण बैन कर दिया गया। कई केस सामने आए जहाँ बच्चे घंटों गेम खेलते रहे, पढ़ाई छोड़ दी, और यहां तक कि गुस्से में हत्या या आत्महत्या तक कर डाली।
यहां फिर से विलेन डोपामाइन Dopamine है। हर बार गेम में जीतने या हारने पर डोपामाइन Dopamine की और ज्यादा खुराक की तलब लगती है। हर गेम के साथ यह बढ़ती जाती है।
कुछ साल पहले लखनऊ PUBG केस बहुत चर्चा में रहा था। एक 16 साल के लड़के ने अपनी मां की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि वो उसे मोबाइल पर इस गेम को खेलने से रोकती थी। बीते सालों में इस लत ने बच्चों खासकर किशोरों को हिंसक भी बना दिया है। Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) के कारण अपने ही घर में चोरी करना, झूठ बोलना जैसी आदतों ने जोर पकड़ा है।
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन): Detox
आज के समय में स्मार्ट फोन, टेबलेट, लैपटॉप, विड़ियो गेम्स और स्मार्ट टीवी से चाहकर भी दूरी बनाना आसान नहीं बल्कि नामुमकिन है। इस बीमारी को आप अपनी विल पावर के दम पर ही मात दे सकते हैं। कुछ सोचे समझे छोटे छोटे प्रयासों से ऐसा संभव है। ये भी जान लें कि डोपामाइन हमारे सर्ववाइल के लिये जरूरी भी है। सीमित मात्रा और नेचुरल तरीके से हमें इसकी आवश्यकता तो है ही।
मोबाइल फोन शायद सबसे बड़ा डिस्ट्रेक्शन है सबसे पहले तो उसमें सोशल मीडिया के सभी नोटिफिकेशन बंद कर दें। ज्यादा बेहतर होगा यदि उन सभी ऐप को रिमूव या डिसेबल ही कर दिया जाये। सामान्य आदमी अधिकतर समय अपने बैडरूम में ही बिताता है सो बैडरूम में फोन की एंट्री ही बैन कर दें। उसे ड्रॉंइगरूम में ही छोड़कर बैडरूम में जायें। पॉसिबल हो तो एक डम्ब फोन (keypad phone) लें और स्मार्ट फोन वाले नंबर की कॉल उस पर फारवर्ड कर लें। अब आप को कॉल मिस होने की एन्जाइटी भी नहीं होगी। फोन की जगह अपना अतिरिक्त समय म्यूज़िक सुनना या किताब पढ़ने में लगायें। इससे प्राकृतिक रूप से डोपामाइन रिलीज होता है।
योग और मेड़िटेशन का अभ्यास शुरू करें। जैसे ही आप कोई जिम ज्वाइन करते हैं तो स्वाभाविक रूप से आपका जंक फूड या अनहैल्दी फूड का कन्जेमपशन अपने आप कम हो जाता है। ठीक उसी प्रकार योग और मेड़िटेशन करने से चित्त शान्त रहता है। और हमारी बॉडी प्राकृतिक और नियंत्रित रूप से डोपामाइन Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) को रिलीज़ करने लगती है।
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) का स्मार्टली उपयोग करें और किसी टारगेट के पूरा होने पर खुद को छोटे मोटे रिवार्ड देना शुरू करें। जैसे कि काम समाप्त होने के बाद थोड़ी देर के लिये टहलने निकल जायें। किसी लक्ष्य को पूरा होने पर कुछ मिठाई या आइसक्रीम खायें।
अगर गेमिंग, शॉपिंग या सोशल मीडिया करना ही है तो एक अधिकतम समय-सीमा तय करें। इसके लिये आप ऐप्स में टाइम-लिमिट सेटिंग का उपयोग करें।
Dopamine (डोपामिन/डोपामाइन) हमें प्रेरणा देता है, खुश करता है। पर जब हम बिना सोचे समझे और बिना लक्ष्य तय किए इसके पीछे भागते हैं तो यह हमें थका देता है, और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। हमें इसका समझदारी से उपयोग करना है, ताकि हम इसके चक्रव्यूह में फंसने की बजाय जीवन का आनंद ले सकें ।